The smart Trick of Shiv chaisa That Nobody is Discussing
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सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
शिव पंचाक्षर स्तोत्र
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
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कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
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वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
अर्थ: हे अनंत एवं नष्ट न होने वाले अविनाशी भगवान भोलेनाथ, सब पर कृपा करने वाले, सबके घट में वास करने वाले शिव शंभू, आपकी जय हो। हे प्रभु काम, क्रोध, मोह, लोभ, अंहकार जैसे तमाम दुष्ट मुझे सताते रहते हैं। इन्होंनें मुझे भ्रम में डाल दिया है, जिससे मुझे शांति नहीं मिल पाती। हे स्वामी, इस विनाशकारी स्थिति से मुझे उभार लो यही उचित अवसर। अर्थात जब मैं इस समय आपकी शरण में हूं, मुझे अपनी भक्ति में लीन कर मुझे मोहमाया से मुक्ति दिलाओ, सांसारिक कष्टों से उभारों। अपने त्रिशुल से इन तमाम दुष्टों का नाश कर दो। हे भोलेनाथ, आकर मुझे इन कष्टों से more info मुक्ति दिलाओ।
शिव आरती